छत्तीसगढ़

समाज सेवा में अग्रणी पायल लाठ क्रिश्मस के अवसर पर बिरहोर जनजाति केलिए सांता क्लॉस बनकर पुरे परिवार के साथ पहुंची कोटा ब्लॉक

बिलासपुर —:रोटरी अस्सिस्टेंट गवर्नर पायल लाठ वैसे तो जरुरतमंदो की सहायता करने कभी पीछे नहीं रही कोरोना काल से अपनी सेवा भाव को सिद्ध कर चुकी पायल विषम से विषम परिस्थितियों में अपनी योगदान देते चली आ रहे किंतु आज मशीही समुदाय के क्रिश्मस त्यौहार के उपलक्ष्य में उन्होंने विशिष्ट जनजातीय बिरहोर केलिए कुछ आश्चर्यचकित कर देने वाला मददत की योजना बनाई जिसे मसीही समाज में सांता क्लॉस कहते है जिनकी विशेषता है की वो जरुरतमंदो की अनचाहे उपहार देकर खुशियां बिखेरना है निराशा भरी चहरे पर मुस्कान लाना है ऐसा ही कुछ आज पायल ने कर दिखाया है .अपने पुरे परिवार के साथ कोटा ब्लाक के ग्राम पंचायत सेमरिया के आश्रित ग्राम मझिपारा सुबह से ही पहुँच गई और वहां के लोगो के बीच अपने सहृदयता से ख़ुशीयां बाँटना सुरु की जो कि एक भावनात्मक क्षण रहा.वहां के जनजातीय महिलाऐं एवं पुरुष सभी आँख नम पड़ गए और बच्चो में चहरे पर एक अनोखी अनकही से मुस्कान निखर आई.कम्बल चादर शर्ट पैंट धोती गमछा चप्पल खिलौने, पकवान, मिठाइयां ये सब कुछ अचानक से देखकर इन जनजातियों ने अपनी गरीबी का ठीकरा नहीं रोया किंतु वे लोग भी पायल एवं उनके परिवार को बांस से बनी टोकरी रिटर्न गिफ्ट के रूप प्रदाय की गई.इन विशिष्ट जनजातीयो को पुरे भारत वर्ष में सबसे पिछड़ा माना जाता इनके लिए बनाई सारी योजना धरातल में फेल है किंतु अभी कुछ दिन पूर्व छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार इनकी बहतरी केलिए फिर से योजना बना रही है.राज्य में, केंद्र सरकार द्वारा घोषित 5 विशिष्ट असुरक्षित जनजातीय समूह जो की इस प्रकार है:-

1. बैगा

2. पहाड़ी कोरवा,

3. अबूझमाड़िया,

4. कमार

5. बिरहोर हैं।

राज्य सरकार द्वारा घोषित संरक्षित जन जाति

1.पंडो

2. भूजिया

इस प्रकार कुल 7 जनजाति हैं जो कि संरक्षित जनजाति मानी जाती है।

इन्ही जनजातियों में से एक जनजाति “बिरहोर” जनजाति है जो कोटा ब्लॉक से लगभग 8 किलोमीटर और बिलासपुर से लगभग 38 से 40किलोमीटर दूर के ग्रामपंचायत सेमरिया के आश्रित ग्राम मझिपारा में निवास करती है। वर्तमान में इनकी आर्थिक हालात बहुत ही दयनीय है,इनके पास जीवन यापन करने के लिए जमीन भी नहीं है जिसमें वे खेती कर अनाज उगाकर खाने का इंतज़ाम कर सके। यह जनजाति बांस से टोकनी इत्यादि बनाकर,बेचकर अपनी दैनिक जरूरतों को पूरा करते हैं यह लोग प्रतिदिन जंगल जाकर बांस काटकर लाते हैं और टोकनी इत्यादि बनाकर बचते है और खाने-पीने की सामग्रीयों का इंतज़ाम करते हैं। इस गाँव की आबादी लगभग 350 के आसपास है, कुल घरों की संख्या 35 से 40 के बीच है। इन लोगों को दो जून की रोटी के लिए बड़ी जद्दोजहद करनी पड़ती है, इन लोगो के पास अत्यंत गरीबी रेखा के राशन कार्ड तो है परंतु जरूरत पड़ने पर कर्ज लेने के कारण और कर्ज ना चुका पाने से कुछ लोगों ने इनके राशन कार्ड गिरवी रख लिए है जिसके कारण भूख का सामना रोज ही करना पड़ता है। ओढ़ने-पहनने के कपड़े इत्यादि भी नहीं होते हैं। यहाँ के लोग कड़ाके की ठंड में अलाव जलाकर रात गुज़रते है।

विशिष्ट असुरक्षित जनजातीय समूह भारत में फ़ैली जनजातियों के ऐसे समूह होते हैं जो जनजातियों से सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक आदि क्षेत्रों में अपेक्षाकृत अत्यधिक संवेदनशील हैं।पायल लाठ ने मिडिया से चर्चा के दौरान अपनी अनुभाव साँझा करते हुए कहाँ की हम सबके सहयोग से ऐसे जरुरतमंदो की समस्याएं कम हो सकती है और हमारे इस मुहीम को मार्ग दर्शन करने वाले अनिल बामने का धन्यवाद ज्ञापित किया और सहयोगकर्ता राजवीर लाठ अंजू सुलतानिया प्रभा सुलतानिया निक्की सुलतानिया प्रेम प्रकाश लाठ वेदवती लाठ तविश लाठ, शब्द लाठ, संतोष देवी बजाज का पूरा सहयोग रहा और आगे भी हम ऐसे कार्य को अंजाम देते रहेंगे

𝐁𝐇𝐈𝐒𝐌 𝐏𝐀𝐓𝐄𝐋

𝐄𝐝𝐢𝐭𝐨𝐫 𝐚𝐭 𝐇𝐈𝐍𝐃𝐁𝐇𝐀𝐑𝐀𝐓 𝐋𝐢𝐯𝐞 ❤
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