छत्तीसगढ़

धान की पत्ती, तने व बालियों में लगने वाले झुलसा (ब्लास्ट) रोग का प्रबंधन

कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा धान मे लगने वाला झुलसा रोग के बारे में जिले के किसानों को जानकारी दी कि यह कवक जनित रोग है जो धान में पौधे से लेकर बाली बनने तक की अवस्था तक इस रोग का आक्रमण होता है। इसके लक्षण पत्तियों, तने की गाठें और धान की बाली पर प्रमुख रूप से दिखाई देते हैं। रोग की प्रारंभिक अवस्था में निचली पत्तियों पर हल्के बैगनी रंग के छोटे- छोटे धब्बे बनते है, जो धीरे-धीरे बढ़कर आंख के समान बीच मे चौडे़ व किनारों पर संकरे हो जाते हैं जो बढ़कर नाव के आकार का हो जाता है जिसे पत्ति ब्लास्ट कहते है आगे चलकर यह रोग का आक्रमण तने की गाठों पर होता है जिससे गाठों पर काले घाव दिखाई देता है रोग से ग्रसित गठान टूट जाती है जिसे नोड ब्लास्ट कहते है धान मे जब बालियां निकलती है उस समय प्रकोप होने पर धान की बाली पर सड़़न पैदा हो जाती है और हवा चलने से बालियां टूट कर गिर जाती है। जिसे पेनिकल झुलसा रोग कहते है इसके नियंत्रण के लिए प्रभावी उपाय अपनाना चाहिए। जिसमें खेतो को खरपतवार मुक्त रखे व पुराने फसल अवशेष को नष्ट कर दे। प्रमाणित बीजों का चयन करें। समय पर बुवाई करें व रोग प्रतिरोधी किस्म का चयन करें। जुलाई के प्रथम सप्ताह मे रोपाई पूरी कर ले, देर से रोपाई करने पर झुलसा रोग लगने का प्रकोप बढ़ जाता है। बीज उपचार करने के लिए जैविक कवकनाशी ट्राइकोडर्मा विरीडी 4 ग्राम प्रति कि.ग्रा.बीज या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस 10 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज दर से उपचारित करें या रासायनिक फफूँद नाशक कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति कि.ग्रा.बीज की दर से उपचारित करें। संतुलित मात्रा में पोषक तत्वों का उपयोग करें।झुलसा रोग के प्रकोप की स्थिति मे यूरिया का प्रयोग न करें। कल्ले व बाली निकलते समय खेत मे नमी रखें। रोग के प्रारम्भिक लक्षण दिखते ही ट्राईफ्लॉक्सी स्ट्रोबिन 25 प्रतिशत ़ टेबूकोनाजोल 50 प्रतिशत डब्ल्यू जी 80.100 ग्राम प्रति एकड़ या ट्राईसाइक्लाजोल 75 प्रतिशत डबल्यूपी 100.120 ग्राम प्रति एकड़ या आइसोप्रोथियोलेन 40 प्रतिशत ईसी. 250 दृ 300 मिली प्रति एकड़ या एजोक्सिस्ट्रबिन 16.7ः व ट्रायसाइक्लोजोल 33.3ःए सी का 200 मिली/एकड़ की दर से आवश्यकतानुसार प्रभावित फसलों पर छिड़काव करें।

𝐁𝐇𝐈𝐒𝐌 𝐏𝐀𝐓𝐄𝐋

𝐄𝐝𝐢𝐭𝐨𝐫 𝐇𝐈𝐍𝐃𝐁𝐇𝐀𝐑𝐀𝐓 𝐋𝐈𝐕𝐄 𝐍𝐞𝐰𝐬
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